भारत सरकार ने असंगठित क्षेत्र के करोड़ों श्रमिकों को बुढ़ापे में वित्तीय सुरक्षा देने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना (PM-SYM) की शुरुआत की है। यह योजना देश के उन श्रमिकों के लिए वरदान साबित हो रही है, जिनकी मासिक आय 15,000 रुपये या उससे कम है और जो 18 से 40 वर्ष की आयु के बीच हैं।
योजना की मुख्य बातें:
-60 वर्ष की आयु के बाद हर माह 3,000 रुपये की न्यूनतम पेंशन सुनिश्चित।
-श्रमिक जितना अंशदान करते हैं, उतना ही सरकार भी उनके खाते में जमा करती है। अंशदान राशि 55 रुपये से 200 रुपये मासिक (आयु के अनुसार) तय है।
-योजना पूरी तरह स्वैच्छिक और अंशदायी है, यानी श्रमिक अपनी क्षमता के अनुसार इसमें भाग ले सकते हैं।
-पारिवारिक पेंशन का प्रावधान: लाभार्थी की मृत्यु पर उसके पति/पत्नी को पेंशन का 50% दिया जाता है।
-असंगठित क्षेत्र के श्रमिक जैसे रेहड़ी-पटरी वाले, घरेलू कामगार, निर्माण मजदूर, कृषि श्रमिक, रिक्शा चालक, बीड़ी मजदूर, कूड़ा बीनने वाले आदि पात्र हैं।
पात्रता और प्रक्रिया:
-श्रमिक का EPFO, NPS या ESIC का सदस्य नहीं होना चाहिए और वह आयकरदाता भी न हो।
-पंजीकरण के लिए आधार कार्ड, बैंक खाता विवरण और मोबाइल नंबर अनिवार्य।
-पंजीकरण देशभर के सभी कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) या मानधन पोर्टल के माध्यम से किया जा सकता है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 31 दिसंबर 2024 तक 30.51 करोड़ से अधिक असंगठित श्रमिक ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत हो चुके हैं। पीएम-एसवाईएम का संचालन श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) और CSC के सहयोग से किया जा रहा है।
निकास और लचीलापन:
-10 वर्ष से पहले योजना छोड़ने पर जमा राशि बैंक ब्याज सहित वापस मिलती है।
-60 वर्ष से पहले मृत्यु या दिव्यांगता की स्थिति में पति/पत्नी को योजना जारी रखने या राशि निकालने का विकल्प मिलता है।
सरकार का लक्ष्य:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में, "आजादी के बाद पहली बार अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले करोड़ों श्रमिकों के लिए ऐसी योजना की परिकल्पना की गई है।" सरकार इस योजना के जरिए सार्वभौमिक पेंशन कवरेज का लक्ष्य लेकर चल रही है, जिससे असंगठित श्रमिकों को सम्मानजनक जीवन और सामाजिक सुरक्षा मिल सके।
प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए बुढ़ापे में आत्मनिर्भरता और सम्मानजनक जीवन का भरोसा देती है। पेंशन के रूप में मिलने वाली 3,000 रुपये की राशि इन श्रमिकों के लिए एक बड़ा सहारा बन रही है, और सरकार का प्रयास है कि कोई भी श्रमिक बुढ़ापे में आर्थिक तंगी का शिकार न हो।
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