लोकतंत्र की खूबी ही यह है कि हर नागरिक, और खासकर विपक्ष, सरकार की आलोचना कर सकता है। लेकिन जब एक राष्ट्रीय नेता भारत के अंदर की समस्याओं को विदेशी मंचों पर ले जाकर बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है, विदेशी मीडिया रिपोर्ट्स को “सच” का प्रमाण बनाता है, और विदेशी नेताओं की राय को अपने देश की संसद और न्यायपालिका से ऊपर रखता है — तो यह सिर्फ आलोचना नहीं, राष्ट्रीय चेतना पर प्रहार बन जाता है।
राहुल गांधी, जो कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेता हैं, पिछले कुछ वर्षों में बार-बार ऐसी रणनीति अपनाते दिखाई दिए हैं।
विदेशी मंचों से भारत पर हमला
2023 में लंदन और केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के मंच से राहुल गांधी ने कहा:
“भारत में लोकतंत्र खत्म हो चुका है।”
“विपक्ष की आवाज़ दबाई जा रही है।”
“विदेशी देशों को भारत की स्थिति पर ध्यान देना चाहिए।”
यह बयान सिर्फ एक राय नहीं था, यह एक तरह से अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की अपील थी। यह वही राहुल गांधी थे, जिन्होंने संसद में बोलने की जगह ब्रिटेन और यूरोप की संस्थाओं से “भारत में लोकतंत्र को बचाने” की उम्मीद जताई।
क्या ये उचित है? क्या देश की समस्याओं का समाधान देश के भीतर नहीं होना चाहिए?
विदेशी मीडिया = भारत की सच्चाई?
राहुल गांधी बार-बार BBC, New York Times, The Guardian, Washington Post जैसी संस्थाओं की रिपोर्टों का हवाला देते हैं।
उदाहरण:
-BBC डॉक्यूमेंट्री (2023) में पीएम मोदी को बदनाम किया गया, जिसे भारत सरकार ने "भ्रामक और पक्षपाती" बताया। लेकिन राहुल ने इसे "सच्चाई को उजागर करने वाली रिपोर्ट" बताया।
-प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की रैंकिंग गिरने पर राहुल गांधी ने संसद में इसे "लोकतंत्र पर हमला" कहा, जबकि यह रिपोर्ट एक निजी संस्था द्वारा बनाई गई थी और उसके मानक भी विवादास्पद रहे हैं।
सवाल यह उठता है:
क्या भारत की 140 करोड़ जनता की राय, चुनाव परिणाम, न्यायपालिका के फैसले और संसद में पास कानून — इन विदेशी रिपोर्ट्स से कमतर हैं?
पाकिस्तान और चीन की भाषा?
राहुल गांधी के कई बयानों की समानता पाकिस्तान और चीन के सरकारी प्रचार से मिलती रही है।
उदाहरण:
गालवान संघर्ष के दौरान, राहुल गांधी ने ट्वीट किया: “चीन ने हमारी ज़मीन ले ली है।” जबकि सेना और सरकार स्पष्ट कर चुकी थी कि कोई ज़मीन नहीं गई।
इन बयानों का इस्तेमाल पाकिस्तानी मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि बिगाड़ने के लिए किया गया।
क्या भारत की संस्थाएं भरोसे लायक नहीं?
राहुल गांधी बार-बार यह कहते हैं कि:
-संसद में बोलने नहीं दिया जाता।
-न्यायपालिका दबाव में है।
-मीडिया बिक चुका है।
-चुनाव आयोग बीजेपी के लिए काम कर रहा है।
लेकिन सच्चाई यह है कि राहुल गांधी खुद संसद में कई बार बोल चुके हैं, कई मीडिया हाउस अब भी सरकार की आलोचना करते हैं, और भारत की न्यायपालिका ने कई बार सरकार के खिलाफ फैसले भी दिए हैं।
तो फिर बार-बार यह “पीड़ित होने की छवि” क्यों गढ़ी जाती है?
जनता की राय क्या कहती है?
सोशल मीडिया और जनमानस में ये धारणा बन चुकी है कि राहुल गांधी:
-विदेशों में जाकर भारत की छवि खराब करते हैं
-विदेशी मीडिया को भारतीय सच्चाई से ऊपर रखते हैं
-अपनी राजनीतिक हार का बदला देश की प्रतिष्ठा से ले रहे हैं
राजनीति बनाम रणनीति: कांग्रेस की दिशा क्या है?
राहुल गांधी की यह राजनीति अब सिर्फ व्यक्तिगत नहीं रही। यह कांग्रेस पार्टी की रणनीति बनती जा रही है- “भारत की आलोचना करो, चाहे देश में या विदेश में।”
यह सोच इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, या डॉ. मनमोहन सिंह से बिल्कुल विपरीत है, जिन्होंने सत्ता में न रहने पर भी देश की छवि को कभी नुक़सान नहीं पहुँचाया।
निष्कर्ष: आलोचना का अधिकार, लेकिन मर्यादा के साथ
भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां हर किसी को बोलने का अधिकार है। लेकिन जब कोई नेता देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं पर अविश्वास जताकर विदेशी शक्तियों से समर्थन मांगे, तो वह आलोचना नहीं, देश की गरिमा के साथ खिलवाड़ बन जाता है।
राहुल गांधी को यह समझना होगा कि लोकतंत्र में आलोचना ज़रूरी है — लेकिन भारत की आवाज़ भारत से उठे, न कि विदेशी राजधानियों से।
आपकी राय?
क्या राहुल गांधी की यह रणनीति विपक्ष की मजबूरी है, या देश के हितों से समझौता?
क्या यह राजनीति आने वाले चुनावों में कांग्रेस की मदद करेगी या और नुकसान?
नीचे कमेंट करके अपनी राय ज़रूर बताएं।
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