सुप्रीम कोर्ट की राहुल गांधी को फटकार- अगर आप सच्‍चे भारतीय होते, तो इस तरह की बातें नहीं करते

राजनीति और सेना जैसे संवेदनशील मुद्दे जब आपस में टकराते हैं, तो हलचल मचती है। ठीक वैसा ही हुआ है कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के साथ। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें भारतीय सेना पर की गई कथित टिप्पणी को लेकर कड़ी फटकार लगाई। मामला नया नहीं, बल्कि 2022 के गलवान संघर्ष से जुड़ा है।


राहुल गांधी पर आरोप है कि उन्होंने कहा था – “चीन ने भारत की 2000 किमी जमीन पर कब्जा कर लिया है और हमारे जवानों को पीटा जा रहा है।”

ये बातें उन्होंने संसद में नहीं, बल्कि सोशल मीडिया और प्रेस ब्रीफिंग में कहीं। बस, यहीं से मामला बिगड़ गया।

 सुप्रीम कोर्ट का रुख – नाराजगी और तीखे सवाल
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने सुनवाई के दौरान राहुल गांधी को सीधे-सीधे सवालों के घेरे में ले लिया।

जस्टिस दत्ता ने पूछा: 
-"आपको कैसे पता चला कि चीन ने 2000 किमी पर कब्जा कर लिया?"
-"क्या आपके पास कोई सबूत है?"
-"अगर आप सच्‍चे भारतीय होते, तो इस तरह की बातें नहीं करते।"
-"आप संसद में बात क्यों नहीं करते? सोशल मीडिया ही क्यों?"

इन टिप्पणियों के जरिए कोर्ट ने ये साफ कर दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा और सेना के विषयों पर बयान देने की एक सीमा होनी चाहिए, खासकर जब आप विपक्ष के नेता हों।

राहुल गांधी की तरफ से क्या कहा गया?
राहुल गांधी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी कोर्ट में पेश हुए और कई दलीलें दीं:
-“राहुल गांधी एक जिम्मेदार विपक्षी नेता हैं और सरकार की चुप्पी को लेकर सवाल उठाना उनका हक है।”
-“अगर विपक्ष को मुद्दे उठाने की आजादी नहीं है, तो ये लोकतंत्र के लिए खतरा है।”

लेकिन कोर्ट ने साफ कर दिया — “आपको बोलना है तो उचित मंच है – संसद, न कि सोशल मीडिया।”

फिलहाल सुनवाई के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को एक अंतरिम राहत दी है। साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किया गया है।

लेकिन राहत के साथ-साथ कड़ी चेतावनी भी मिल गई।

मांमला क्या है?
इस पूरे केस की शुरुआत की थी बीआरओ (सीमा सड़क संगठन) के पूर्व निदेशक उदय शंकर श्रीवास्तव ने।
उनका आरोप था कि “राहुल गांधी की टिप्पणी से भारतीय सेना का अपमान हुआ है। वह लगातार ‘चीनी सेना हमारे जवानों को पीट रही है’ जैसे बयान दे रहे हैं।”

पहले लखनऊ की एमपी/एमएलए कोर्ट ने समन भेजा, फिर राहुल गांधी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहाँ से याचिका खारिज हो गई थी। अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है।

ये मामला सिर्फ एक बयान का नहीं है। ये बहस है:
-क्या ऐसे संवेदनशील मुद्दों को संसद में उठाना चाहिए, न कि सोशल मीडिया या पब्लिक प्लेटफॉर्म्स पर?

सुप्रीम कोर्ट फिलहाल मामले पर विचार कर रही है। आने वाले हफ्तों में ये साफ हो जाएगा कि क्या राहुल गांधी को फुल राहत मिलेगी, या क्या यह बयान उनके खिलाफ राजनीतिक-न्यायिक मोर्चा खोल देगा।

एक बात तो तय है – ये मामला सिर्फ कानून का नहीं, बल्कि लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की आजादी और राष्ट्रवाद की परिभाषा से भी जुड़ा है।

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