आसमान से आगे का सपना — जब प्रधानमंत्री ने अंतरिक्ष यात्री से की दिल से बात

जब कोई देश अपने पहले मानव अंतरिक्ष मिशन की सफलता का जश्न मना रहा हो, और उसी समय उसका प्रधानमंत्री उस मिशन के हीरो से बातचीत कर रहा हो तो वह सिर्फ एक मुलाकात नहीं होती, बल्कि एक युग की शुरुआत होती है। 18 अगस्त 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गगनयान मिशन से लौटे भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला से जो संवाद किया, वो तकनीक, विज्ञान, सपनों और जिम्मेदारियों की एक अद्भुत यात्रा थी।

जब आप लौटते हैं, तो धरती भी अजनबी लगती है…”

शुभांशु शुक्ला ने प्रधानमंत्री से साझा किया कि अंतरिक्ष से लौटना केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि एक शरीर और मन की फिर से पुनर्रचना है। उन्होंने बताया: “सर, ऊपर ग्रैविटी नहीं होती… और नीचे आकर चलना तक मुश्किल हो जाता है। दिमाग को समय लगता है ये समझने में कि अब फिर से सामान्य गुरुत्वाकर्षण में जीना है।”

यह बात सुनकर शायद हर भारतीय को गर्व और आश्चर्य दोनों हुआ होगा कि विज्ञान की ये ऊँचाइयाँ अब हमारे अपने लोगों ने छुई हैं।

अंतरिक्ष में मूंग और मेथी भारतीय विज्ञान की सादगी और शक्ति

क्या आपने कभी सोचा था कि अंतरिक्ष में उगाई गई मूंग और मेथी हमारी फूड सिक्योरिटी का समाधान बन सकती हैं? शुक्ला ने बताया कि छोटे से स्पेस स्टेशन में बहुत कम संसाधनों में भी इन बीजों ने अंकुरण शुरू कर दिया। “8 दिन में स्प्राउट्स उग गए थे सर। मुझे लगा, हमारे देश का यह ज्ञान अब वहां भी काम आ रहा है।”

यह विज्ञान का ऐसा रूप है जिसमें परंपरा, प्रकृति और तकनीक तीनों का समन्वय दिखता है।

दुनिया गगनयान को जानती है… और इंतजार कर रही है”

शुभांशु शुक्ला ने एक और दिलचस्प बात साझा की उनके विदेशी साथी अंतरिक्ष यात्री भारत के गगनयान मिशन को लेकर जितने उत्साहित थे, उतने शायद हम खुद भी नहीं थे! “मेरे क्रूमेट्स ने मुझसे कहा कि जब भारत का मिशन लॉन्च हो, तो हमें इनवाइट जरूर करना।” यानी भारत अब केवल ‘स्पेस में पहुंचने वाला देश’ नहीं है, बल्कि ‘स्पेस में नेतृत्व करने वाला देश’ बनने की ओर अग्रसर है।

प्रधानमंत्री का ‘होमवर्क’ और नई पीढ़ी की प्रेरणा

प्रधानमंत्री ने शुक्ला से हँसते हुए पूछा कि “जो होमवर्क दिया था, उसका क्या हुआ?” शुक्ला ने मुस्कुराकर जवाब दिया: “सर, होमवर्क भी किया और मिशन से सीख भी लाया। अब जिम्मेदारी है कि और बच्चों को इस राह तक पहुंचाऊं।” उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष से लाइव बात के दौरान कई बच्चों ने सवाल पूछा: “सर, हम कैसे एस्ट्रोनॉट बन सकते हैं?”

क्या यह भारत के बदलते सपनों का सबसे सुंदर चित्र नहीं है?

आत्मनिर्भर भारत और अंतरिक्ष में नेतृत्व

प्रधानमंत्री ने बातचीत में कहा कि भारत को अब आत्मनिर्भर स्पेस टेक्नोलॉजी और मैन्युफैक्चरिंग में भी अग्रणी बनना होगा। शुक्ला ने भी जोड़ा: “अगर भारत अपना खुद का स्पेस स्टेशन बनाए और बाकी देश उसमें शामिल हों तो यह एक ऐतिहासिक कदम होगा।”

यह सिर्फ एक तकनीकी महत्वाकांक्षा नहीं है यह भारत के आत्मविश्वास का प्रतीक है।

जब मैंने भारत को अंतरिक्ष से देखा…”

शुक्ला ने स्पेस से ली गई तस्वीरों के बारे में बताया कैसे भारत का त्रिकोणीय रूप, हैदराबाद की लाइटिंग, हिमालय की परछाइयाँ, और बिजली की चमक उन्हें एक अलग ही भावनात्मक अनुभव दे रही थी।सर, वो मेरा देश था… और मैं उसे अंतरिक्ष से देख रहा था। यह अहसास शब्दों में नहीं बताया जा सकता।”

ये केवल एक मिशन नहीं, एक आंदोलन है

प्रधानमंत्री मोदी और शुभांशु शुक्ला की यह बातचीत एक गहरी सीख देती है कि जब नेतृत्व और विज्ञान एक साथ चलते हैं, तो देश ना केवल अंतरिक्ष छूता है, बल्कि भविष्य को आकार भी देता है।

अब, जब कोई बच्चा आकाश की ओर देखे और कहे मैं भी एक दिन वहां जाऊंगा”, तो वह केवल सपना नहीं, एक संभावना होगी।

क्या आप भी इस परिवर्तन का हिस्सा बनना चाहते हैं?

तो अब समय है सोच को विस्तार देने का क्योंकि भारत अब सिर्फ धरती पर नहीं, अंतरिक्ष में भी अपनी जगह बना रहा है।

अपनी राय नीचे कमेंट में लिखें क्या आप भी एक दिन स्पेस में जाना चाहेंगे?

No comments:

Post a Comment

Popular Posts