भारत में शिक्षा के क्षेत्र में 29 जुलाई 2020 को एक नया युग शुरू हुआ, जब नई शिक्षा नीति 2020 (एनईपी 2020) लागू हुई। यह सिर्फ सुधार का नाम नहीं, बल्कि स्कूली शिक्षा में एक पूरी तरह से नया ढांचा और सोच लेकर आई है। अब स्कूल सिर्फ रटना-पढ़ना या बोर्ड की परीक्षाओं के नंबर पाने तक सीमित नहीं रहे, बल्कि यहाँ सीखना सीखाने का तरीका, बच्चों की जिज्ञासा, रचनात्मकता और उनकी संपूर्ण विकास पर फोकस किया जा रहा है।
एनईपी 2020 ने पुराने 10+2 मॉडल को हटाकर 5+3+3+4 संरचना पेश की है, जिसका मतलब है:
-शुरुआती 5 साल (3 साल प्री-स्कूलिंग + कक्षा 1-2) में बाल्यावस्था देखभाल और खेल-आधारित पढ़ाई,
-फिर 3 साल (कक्षा 3-5) में खोज-आधारित, अनुभवात्मक सीखने का चरण,
-अगले 3 साल (कक्षा 6-8) में विषयगत व्यापक अध्ययन,
-और अंत में 4 साल (कक्षा 9-12) में विशेषज्ञता और व्यावसायिक शिक्षा की शुरुआत।
पहले तीन वर्षों में बच्चों को मातृभाषा में पढ़ाया जाता है, जिससे मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मक योग्यता मजबूत हो। इसी के साथ, 5+3+3+4 ढांचे के तहत पढ़ाई ज्यादा बहुभाषी (मल्टीलिंगुअल) और गतिविधि-आधारित हो गई है।
स्कूलों में अब ‘निपुण भारत मिशन’ के तहत कक्षा 3 तक के बच्चों को पढ़ाई और गणित में दक्ष बनाने की राष्ट्रीय पहल शुरू हो चुकी है। लगभग 8.9 लाख स्कूलों में 4.2 करोड़ से ज्यादा बच्चे इस से जुड़ चुके हैं। साथ ही, बच्चों की पढ़ाई को मजेदार और प्रभावी बनाने के लिए ई-जादुई पिटारा जैसे डिजिटल एआई-संचालित शिक्षण ऐप भी पेश किए गए हैं।
शिक्षकों की क्षमता बढाने के लिए निष्ठा ट्रेनिंग प्रोग्राम के तहत लाखों शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया है, ताकि वे बच्चों को बेहतर तरीके से पढ़ा सकें।
अन्य बातों में, सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित छात्रों के लिए समावेशी प्रयास भी हुए हैं। कई छात्रावास और आवासीय विद्यालय बनाए गए हैं जहां विशेष जरूरतों वाले बच्चे जैसे दिव्यांगजन, लड़कियां और एसईडीजी समूह के बच्चे बेहतर शिक्षा पा रहे हैं। भारतीय सांकेतिक भाषा को अब स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली विषय के तौर पर शामिल किया गया है, जिससे बधिर बच्चों की शिक्षा में नई क्रांति आई है।
पाठ्यक्रम में भी बड़े बदलाव आए हैं जहां अब सिर्फ किताबों तक सीमित न रहकर बच्चों की आलोचनात्मक सोच और रचनात्मकता को बढ़ावा दिया जा रहा है। नई किताबें, जैसे "मृदंग" (अंग्रेजी), "सारंगी" (हिंदी) और "आनंददायक गणित" बच्चों का ध्यान अधिक आकर्षित कर रही हैं।
सेवा और संसाधनों को जोड़ने के लिए विद्यांजलि जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म से स्कूलों में स्वयंसेवकों और संसाधनों की उपलब्धता आसान हुई है।
भारत की शिक्षा का यह नया अध्याय न केवल बच्चों को जानकारी दे रहा है, बल्कि उनमें आत्मविश्वास, जिज्ञासा और स्वावलंबन की भावना भी पैदा कर रहा है। इस नई शिक्षा नीति के लागू होने से स्कूल अब बच्चों के लिए केवल पढ़ाई की जगह नहीं, बल्कि पूरी तरह से विकसित होने का मंच बन गए हैं।
शिक्षा की यह यात्रा तो अभी जारी है, लेकिन बदलाव की झलकें हमें अब साफ दिख रही हैं। एक समावेशी, तकनीकी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का सपना अब साकार हो रहा है, जो देश के हर बच्चे के लिए है।
सोर्स पीआईबी
No comments:
Post a Comment