राजधानी दिल्ली के ताज पैलेस होटल में रविवार, 31 अगस्त को राज दरभंगा वंश के इतिहास और राष्ट्र निर्माण में उनके बहुप्रतिष्ठित योगदान पर आधारित एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर लेखक और इतिहासकार श्री तेजकर झा की पुस्तक “राज दरभंगा: धर्म संरक्षण से लोक कल्याण” का औपचारिक विमोचन किया गया। कार्यक्रम में देश के प्रख्यात विचारक, नीति-निर्माता, इतिहासकार, सांस्कृतिक विद्वान और विभिन्न क्षेत्रों की नामचीन हस्तियाँ शामिल हुईं।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केंद्रीय मंत्री श्री भूपेंद्र यादव और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबोले रहे। दोनों ही नेताओं ने राज दरभंगा के ऐतिहासिक योगदान को नमन करते हुए कहा कि यह वंश केवल एक जागीरदार परिवार नहीं था, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना, शैक्षिक उन्नति और धार्मिक संरक्षण का जीवंत प्रतीक था।
राज दरभंगा: जनकल्याण का पर्याय
दरभंगा राजपरिवार की ओर से कुमार कपिलेश्वर सिंह ने सभा को संबोधित किया और परिवार की परोपकारी परंपरा को दोहराते हुए कहा कि राजघराने के ट्रस्ट आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य, सांस्कृतिक संरक्षण और लोककल्याण के कार्यों में निरंतर सक्रिय हैं। उन्होंने अपने पूर्वजों के योगदान को याद करते हुए कहा कि देश की आजादी, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में हमारे परिवार द्वारा किए गए कार्य केवल ‘दरभंगा राज’ का योगदान नहीं, बल्कि पूरे मिथिला और भारत का गौरव हैं। यही परंपरा हम आगे भी पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से निभाएंगे।
उनके बेटे और राज दरभंगा वंश के सबसे युवा उत्तराधिकारी कुमार अरिहंत सिंह का 18वां जन्मदिन भी इसी अवसर पर मनाया गया। इस तरह कार्यक्रम ने अप्रत्यक्ष रूप से एक नए उत्तराधिकारी के उदय का संदेश भी दिया।
दत्तात्रेय होसबोले ने राजा को विष्णु का स्वरूप बताया
अपने उद्बोधन में आरएसएस के दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि जहां यूरोप में राजा प्रायः विलासिता और शोषण के प्रतीक माने गए, वहीं भारत में राजा जनकल्याण का पर्याय माने गए और उन्हें ‘विष्णु का रूप’ कहा गया। उन्होंने विशेष रूप से उल्लेख किया कि राज दरभंगा ने औपनिवेशिक काल में देशभर के प्रमुख मंदिरों का संरक्षण व पुनर्निर्माण कराया, उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भव्य संस्थानों की स्थापना की, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए न केवल पांच लाख रुपये का योगदान दिया बल्कि पंडित मदन मोहन मालवीय के साथ मिलकर 14 लाख से अधिक निधि एकत्र कराने में भी सहयोग दिया।
उन्होंने जोर देकर कहा कि दरभंगा के महाराज रामेश्वर सिंह और उनके पूर्वज केवल शासक नहीं थे, बल्कि धर्म, शिक्षा एवं संस्कृति के प्रहरी के रूप में इतिहास में अमर हैं।
भूपेंद्र यादव ने मिथिला को बताया ‘भारत की आत्मा’
केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि मिथिला और दरभंगा केवल बिहार की नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारत की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतिनिधित्व करते हैं।
उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि राजा जनक से लेकर दरभंगा राज तक इस धरती ने हमेशा ज्ञान, दर्शन और अध्यात्म को पोषित किया है। मिथिला की परंपरा न केवल इस क्षेत्र, बल्कि पूरे भारत की वैचारिक और सांस्कृतिक आत्मा है। सरकार इस गौरवगाथा को पुनर्जीवित करने के लिए प्रतिबद्ध है।
उन्होंने दरभंगा के स्थापत्य और विश्वविद्यालयों की सराहना करते हुए यह भी कहा कि आजादी से पहले ही मिथिला ने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अतुलनीय कार्य कर दिखाया था।
पुस्तक विमोचन और सांस्कृतिक कार्यक्रम
कार्यक्रम में श्री तेजकर झा की पुस्तक “राज दरभंगा: धर्म संरक्षण से लोक कल्याण” का विमोचन हुआ। इस पुस्तक में दरभंगा राजवंश के राष्ट्र और समाज-जीवन में योगदान को ऐतिहासिक दृष्टि से दर्ज किया गया है।
धर्मगुरु गौतम स्वामी ने भी इस अवसर पर विचार रखे और कहा कि ऐसे आयोजन यदि मिथिला की धरती, विशेषकर दरभंगा और राजनगर के प्रांगण में होता, तो उनका महत्व और बढ़ जाता। इस सुझाव का स्वागत केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने भी किया।
कार्यक्रम के अंत में प्रसिद्ध शंखवादक विपिन मिश्रा द्वारा प्रस्तुत शंखध्वनि ने पूरे वातावरण को आध्यात्मिकता और गौरव से भर दिया।
राज दरभंगा: एक गौरवपूर्ण परंपरा
ब्रिटिशकाल की सबसे बड़ी जागीरों में से एक ‘राज दरभंगा’ मात्र एक राजनीतिक सत्ता न होकर भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के संरक्षण का अप्रतिम केंद्र रहा है। इस वंश ने मैथिली भाषा-साहित्य के पुनर्जागरण, विद्यालयों और विश्वविद्यालयों की स्थापना, मंदिरों के जीर्णोद्धार, लोककल्याण और दानशीलता में उल्लेखनीय योगदान दिया है।
कार्यक्रम का समापन दरभंगा राजघराने की ओर से श्रीमती कविता सिंह द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
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