हथकरघा: परंपरा में नवाचारों का समावेश

"हमें अपने देश भर में हथकरघा की समृद्ध विरासत और जीवंत परंपरा पर बहुत गर्व है। हम अपने कारीगरों के प्रयासों की कद्र करते हैं और 'वोकल फॉर लोकल' के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराते हैं।"- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

हाथ से बुने सपनों का उत्सव
भारत की आत्मा को अगर किसी चीज में महसूस किया जा सकता है, तो वह है देश के बुनकरों के हाथों से बुने कपड़े। इन्हीं सपनों को सम्मान देने और नई ऊर्जा देने के लिए हर साल 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जाता है। इस साल इसका 11वां संस्करण नई दिल्ली के भारत मंडपम में बेहद धूमधाम से आयोजित किया गया।

इस मौके पर देश की माननीय राष्ट्रपति ने 2024 के संत कबीर पुरस्कार और राष्ट्रीय हथकरघा पुरस्कार विजेताओं को सम्मानित किया। इनमें से कई ऐसे बुनकर रहे, जिन्होंने अपनी कला के जरिए न सिर्फ परंपरा को जीवित रखा बल्कि नए प्रयोगों से इसे आधुनिक बाजार से भी जोड़ा।

हथकरघा हैकाथॉन 2025: युवा सोच, नया विजन
एक बड़ी पहल के रूप में, 4 अगस्त को दिल्ली के IIT अनुसंधान एवं नवाचार पार्क में हथकरघा हैकाथॉन 2025 की शुरुआत की गई।

इस हैकाथॉन में छात्रों, डिज़ाइनरों, इंजीनियरों और बुनकरों को एक मंच पर लाकर परंपरागत चुनौतियों का नया समाधान खोजने की कोशिश की गई। थीम थी — "सपना देखो; कर दिखाओ"।

चुने गए विचारों को मंत्रालय की ओर से समर्थन मिला और उन्हें ज़मीन पर उतारने के लिए मार्गदर्शन भी।

हथकरघा उत्सव की झलकियाँ: एक हफ्ता, अनेक रंग

1 से 8 अगस्त तक राजधानी में चलने वाले हथकरघा महोत्सव ने परंपरा, संस्कृति और नवाचार को एक ही मंच पर पेश किया:
-"अपनी बुनाई को जानें" अभियान: नई पीढ़ी को हथकरघा से जोड़ने के लिए विशेष कार्यक्रम- जिसमें लाइव बुनाई, वर्कशॉप्स और इंटरैक्टिव कहानियाँ शामिल थीं।
-साड़ी महोत्सव @ जनपथ: 116 पारंपरिक बुनाइयों की साड़ियों की भव्य प्रदर्शनी।
-'वस्त्र वेद' फैशन शो और 'नाद' संगीत कार्यक्रम: फैशन और संगीत के जरिए हथकरघा की बारीकियों को पेश किया गया।
-इंडिया इंटरनेशनल हैंड-विवन एक्सपो: अंतरराष्ट्रीय खरीदारों और निर्यातकों को बुनकरों से जोड़ने का प्रयास।

हथकरघा: केवल कपड़ा नहीं, एक संस्कृति
भारत में आज भी 35 लाख से ज्यादा परिवार हथकरघा से जुड़े हैं। 72% से अधिक बुनकर महिलाएँ हैं, जो इससे अपनी आजीविका और आत्मनिर्भरता दोनों प्राप्त करती हैं।

हर बुनाई एक कहानी कहती है- बनारसी, चंदेरी, कांजीवरम, पोचमपल्ली, जामदानी, बालूचरी... ये सिर्फ कपड़े नहीं, हमारी विरासत का जीवंत दस्तावेज़ हैं।

दुनिया में चमक रहा है भारतीय हथकरघा
भारत दुनिया का 95% हैंड-विवन कपड़ा बनाने वाला देश है। अमेरिका, यूएई, नीदरलैंड, फ्रांस और यूके जैसे देश भारत से हथकरघा उत्पादों का आयात करते हैं।

वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का कुल निर्यात 700 करोड़ रुपये से भी अधिक रहा। इसमें होम डेकोर (कुशन, पर्दे आदि) और फर्श कवरिंग (कालीन, चटाई) सबसे आगे रहे।

सरकारी योजनाओं से बदल रहा है चेहरा
भारत सरकार ने हथकरघा क्षेत्र को मज़बूत बनाने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे:
-राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम (NHDP)
-कच्चा माल आपूर्ति योजना (RMSS)
-बुनकर मुद्रा ऋण योजना
-हथकरघा विपणन सहायता योजना
-हैंडलूम मार्क और इंडिया हैंडलूम ब्रांड (IHB)

इन योजनाओं से डिजाइन में नवाचार, विपणन में सहायता, प्रशिक्षण, ऑनलाइन बिक्री और बुनकरों की सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा मिला है।

परंपरा में भविष्य की बुनाई

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस सिर्फ अतीत की याद नहीं है, बल्कि भविष्य की एक नींव भी है। परंपरा के धागों को तकनीक और नवाचार से जोड़ते हुए भारत का हथकरघा क्षेत्र एक नई कहानी लिख रहा है — जहाँ विरासत भी जीवित है और भविष्य भी तैयार हो रहा है। इस उत्सव के जरिए भारत ने एक बार फिर साबित किया कि उसके बुनकर न केवल देश की संस्कृति के रक्षक हैं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के भी सच्चे निर्माता हैं।

सोर्स पीआईबी

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