जगदीप धनखड़ का उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा: कारण, राजनीतिक समीकरण और जीवन परिचय

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई 2025 को अपने पद से अचानक इस्तीफा देकर देश की राजनीति में हलचल मचा दी। संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन जब सभी की निगाहें सरकार और विपक्ष की रणनीतियों पर टिकी थीं, तब इस अप्रत्याशित निर्णय ने सभी को चौंका दिया। उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा होने में अभी लगभग दो वर्ष शेष थे, ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है कि उन्होंने ऐसा निर्णय क्यों लिया? 


धनखड़ जी ने अपने इस्तीफे में स्वास्थ्य कारणों का जिक्र करते हुए कहा कि उन्हें चिकित्सकों ने पूर्ण विश्राम की सलाह दी है और इसी कारण वे उपराष्ट्रपति पद से तत्काल प्रभाव से हट रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा सौंपा, जिसे स्वीकार कर लिया गया। हालांकि उन्होंने सार्वजनिक रूप से किसी बीमारी के बारे में नहीं बताया, लेकिन मार्च 2025 में उन्हें AIIMS में कार्डियक समस्याओं के लिए भर्ती कराया गया था। इससे संकेत मिलता है कि उनकी सेहत वास्तव में गिर रही थी।

हालांकि विपक्षी दल विशेष रूप से कांग्रेस ने इस फैसले को सिर्फ स्वास्थ्य तक सीमित मानने से इनकार किया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सवाल उठाया कि आखिर 21 जुलाई दोपहर 1 बजे से 4:30 बजे के बीच ऐसा क्या हुआ कि उपराष्ट्रपति को तुरंत इस्तीफा देना पड़ा? उन्होंने यह इशारा किया कि हो सकता है, कोई गहरा राजनीतिक या संवैधानिक घटनाक्रम इस निर्णय के पीछे हो।

धनखड़ जी को एनडीए की ओर से वर्ष 2022 में उपराष्ट्रपति पद के लिए प्रत्याशी घोषित किया गया था और उन्होंने भारी मतों से जीत दर्ज की थी। उनका कार्यकाल राज्यसभा के सभापति के रूप में प्रभावी रहा, लेकिन विपक्ष ने अक्सर उन पर सत्ता पक्ष का पक्ष लेने का आरोप लगाया।

उनके कार्यकाल के दौरान कई बार संसद में हंगामे की स्थिति बनी और उन्होंने नियमों के तहत विपक्ष के कई सदस्यों को निलंबित भी किया। 2024 के शीतकालीन सत्र के दौरान जब सरकार और विपक्ष के बीच टकराव चरम पर था, तब विपक्षी सांसदों का कहना था कि उपराष्ट्रपति ने तटस्थ भूमिका नहीं निभाई। इसके बाद विपक्ष ने उनके इस्तीफे या महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने की चेतावनी भी दी थी।

जगदीप धनखड़ का जीवन परिचय
धनखड़ जी का जीवन एक साधारण किसान परिवार से शुरू होकर भारत के दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुंचने की प्रेरणादायक कहानी है। उनका जन्म 18 मई 1951 को राजस्थान के झुंझुनूं जिले के किथाना गांव में एक जाट किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने चित्तौड़गढ़ के सैनिक स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और फिर राजस्थान विश्वविद्यालय से बीएससी और एलएलबी की डिग्री प्राप्त की।

अपने कानूनी करियर की शुरुआत 1979 में राजस्थान हाई कोर्ट से की। वे 1990 में वरिष्ठ अधिवक्ता बने और उच्चतम न्यायालय में भी सक्रिय रहे।

उनका राजनीतिक जीवन 1989 में शुरू हुआ जब वे जनता दल के टिकट पर झुंझुनूं से लोकसभा सांसद चुने गए। चंद्रशेखर सरकार में उन्हें संसदीय कार्य मंत्रालय का राज्य मंत्री बनाया गया। 1993 में वे राजस्थान विधानसभा के लिए चुने गए और 1998 तक किशनगढ़ क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।

वर्ष 2019 में उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया। ममता बनर्जी के साथ उनके लगातार टकराव ने उन्हें लगातार मीडिया की सुर्खियों में बनाए रखा। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कई बार कहा कि वे विपक्ष के नेता की तरह काम कर रहे हैं, न कि राज्यपाल की तरह।

वर्ष 2022 में उन्होंने NDA के उम्मीदवार के तौर पर उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली और संसद में अपने सशक्त संचालन के लिए चर्चा में रहे।

इस्तीफे के बाद की स्थिति
उनके इस्तीफे के बाद उपराष्ट्रपति पद रिक्त हो गया है। भारतीय संविधान के अनुसार, इस पद के लिए संसद के दोनों सदनों के सांसदों द्वारा एक नया चुनाव कराया जाएगा। तब तक के लिए राज्यसभा के सभापति का कार्यभार उपसभापति संभाल सकते हैं।

एनडीए ने नए उपराष्ट्रपति पद के लिए संभावित नामों पर मंथन शुरू कर दिया है, जिनमें कुछ वरिष्ठ नेताओं और पूर्व राज्यपालों के नाम सामने आ रहे हैं। वहीं विपक्ष इस बात की मांग कर रहा है कि धनखड़ के इस्तीफे के पीछे की परिस्थितियों को सार्वजनिक किया जाए और यदि कोई दबाव रहा हो तो उसे उजागर किया जाए।

जगदीप धनखड़ का इस्तीफा एक साधारण प्रशासनिक निर्णय नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई परतें हो सकती हैं। जहां एक ओर उनकी सेहत और उम्र के आधार पर इस फैसले को जायज माना जा सकता है, वहीं दूसरी ओर उनके और विपक्ष के बीच विवाद और असहमति ने इसे और रहस्यमयी बना दिया है।

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